Wednesday, January 27, 2010

हे भाग्य विधाता !!

लोकतंत्र यदि मानव होता ,चीख चीख रोता चिल्लाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

है स्वतंत्र गणतंत्र राष्ट्र पर , क्या सब जन स्वतंत्र अभी हैं ?
जो निर्धन ,निर्बल, दुर्बल हैं ,वो सारे परतंत्र अभी हैं ॥
जिसके हाथ में मोटी लाठी , भैंस हांक कर वो ले जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

मान मिटायें लोकतंत्र का ,हाथ में जिनके संविधान है ।
सदन में हाथापाई करते , अजब गजब विधि का विधान है ॥
किन लोगों को चुना है हमने ,माथा पीट रहा मतदाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

जो अनाज पैदा करते हैं,कंगले वो सारे किसान हैं ।
करें मुनाफा जमाखोर वो ,जो दलाल हैं बेईमान हैं ॥
पेट सभी का भरनेवाला ,सपरिवार भूखा मर जाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

सब धर्मों का आदर करिये ,कहता अपना संविधान है ।
घ्रिणित सोच एम.एफ.हुसेन की ,फिर भी उसका बड़ा मान है ॥
कला के नाम पे करे नंगई , हिंदू मुस्लिम को लड़वाता ।
अब कितना अपमान सहुंगा ,बतलाओ हे भाग्य विधाता ॥

Monday, January 18, 2010

सर्दी में तुम आ जाओ---

सर्दी में तुम आ जाओ लेकर कुछ गरमी ।
आँखों में कुछ शर्म,नमक जितनी बेशर्मी ॥

लाना वो मुस्कान मुझे व्याकुल जो कर दे ।
वही महकता बदन वही हाथों की नरमी ॥

इक दूजे पर अपना सारा प्यार लुटा दें ।
कभी तनिक बिंदास, कभी कुछ सहमी सहमी ॥

चलो आज आओ मेरा अन्तर्मन छू लो ।
छूने में कुछ कोमलता हो कुछ बेरहमी ॥

लब खोलो , कुछ बोलो मुझसे आँख मिलाकर ।
पिघला डालो बर्फ , भरो रिश्तों में गरमी ॥

Tuesday, January 12, 2010

नये ब्लागर का स्वागत करें

नव वर्ष में मेरे मित्र  दिपायन कंठा जी का हिंदी ब्लाग जगत में आगमन हुआ है । दिपायन जी मूल रूप से बांग्ला भाषी हैं लेकिन हिंदी पर भी समान अधिकार रखते हैं । उनके ब्लाग का नाम है भावनायें  । ब्लाग जगत के सभी सदस्यों से अनुरोध है कि नये ब्लागर का उत्साहवर्धन करें ।

Thursday, January 7, 2010

गये साल का तराना

तुमको कुछ बात बताना था
इस दिल का हाल सुनाना था
क्या क्या गुजरी बतलाना था
तुम चले गये तुम्हे जाना था ।

कभी सफल रहे , कभी विफल रहे
कभी दहल गये , कभी अटल रहे
क्या क्या झेला बतलाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था

खेतों में हरियाली होगी
अब देश में खुशहाली होगी
यूं ही दिल को बहलाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था

दिखता नही विकास कैसा
निकला और चला गया पैसा
जिस जेब में उसको जाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था

बहुतों को मिला थोड़ा थोड़ा
फंस गया अकेला मधु कोड़ा
इसका पर्दा सरकाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था

क्यों जिंदा हैं अफजल , कसाब
कब होगा जख्मों का हिसाब
उन घावों को सहलाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था

कुछ खट्टी सी कुछ मीठी सी
कुछ कड़वी सी कुछ तीखी सी
जीवन का स्वाद चखाना था ।
तुम चले गये तुम्हे जाना था