Sunday, August 22, 2010

क्या आदमी है

मां-बाप के लिये कभी , कुछ ना करे फिर भी ।
मां-बाप की आँखों का , तारा है आदमी ।।

बेटे की जिद के आगे , धृतराष्ट्र झुक गये ।
अपने ही अजीजों से , हारा है आदमी ॥

अपनों का कत्ल करके , बादशाह बन गया ।
मक्कारी में बुलंद सितारा है आदमी ॥

इक दूसरे के खून का , प्यासा कभी कभी ।
इक दूसरे का गम में सहारा है आदमी ॥

बरबाद कभी बाढ़ में , तूफान में कभी ।
कुदरत के आगे कितना , बेचारा है आदमी ॥

गरमी कभी ठंडक कभी ,और जलजला कभी ।
बरसात का , हालात का , मारा है आदमी ॥

फरमाइशें लम्बी हैं , पूरी नहीं होतीं ।
बीबी की नजर में तो , नकारा है आदमी ॥

उनकी नजर में वोट हैं , इंसान नही हैं ।
सियासत में आदमी का , चारा है आदमी ॥