Monday, October 18, 2010

क्या जीवन का अंत हो गया ?कुछ सपने यदि टूट गये (अजय की गठरी)

क्या बतलायें क्या मिलता है , दिल चोरी हो जाने में ।
और मजा कितना आता है , दिल की बात सुनाने में ॥

मुझसे कोई बात नहीं की ,झलक दिखाकर चले गये ।
तन्हां रातें बीत रही हैं , घायल दिल सहलाने में ॥

मैंने तेरा तुमने मेरा ,छिप छिप कर दीदार किया ।
हाय जवानी बीत रही है ,छिपने और छिपाने में ॥

कितने लम्हें बीत गये हैं , कितने लम्हे बीतेंगे ।
कितने लम्हों की देरी है और तुम्हारे आने में ॥

कितनी रातें तारे गिनते गिनते ,काटी जाती हैं ।
दीवाने पागल हो जाते , इश्क में ,इश्क निभाने में ॥

कभी शर्म से , कभी सहम कर , सिमटे टूटे ,बिखर गये ।
जाने कितने ख्वाब अधूरे ,इस बेदर्द जमाने में ॥

मम्मी-पापा मान गये हैं , पंचायत से डरते हैं ।
उनसे क्या उम्मीद , लगे हैं जो सरकार बचाने में ॥

जिनके दामन में खुशियां हैं ,कैसे उनको समझायें ।
कितना दर्द छिपाना पड़ता , एक तबस्सुम लाने में ॥

क्या जीवन का अंत हो गया ? कुछ सपने यदि टूट गये ।
जीवन व्यर्थ गंवा मत देना , यूं ही अश्क बहाने में ॥

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                                   अजय कुमार ( गठरी पर )
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Saturday, October 2, 2010

बापू क्या ये राज-धर्म है ? (अजय की गठरी )

तन पे लंगोटी ,हाथ में लाठी ।
दुबली पतली सी कद-काठी ॥

गोल गोल आँखों का चश्मा ।
बातों में जादुई करिश्मा ॥

भारत प्रिय था ,प्राण से ज्यादा ।
राम राज लाने का इरादा ॥

देश प्रेम का अलख जगाया ।
अंग्रेजों को मार भगाया ॥

भारत उनकी प्राण-आत्मा ।
इसीलिये कहलाये महात्मा ॥

सत्य अहिंसा के थे पुजारी ।
राष्ट्रपिता को नमन हमारी ॥

हम तो सिर्फ ,निभाते रस्में ।
झूठ में खाते ,आपकी कस्में ॥

रहता है फटेहाल ,स्वदेशी ।
काट रहा है माल , विदेशी ॥

अन्न गोदामों में है सड़ता ।
भूख से मुफलिस रोज ही लड़ता ॥

बापू क्या ये राज-धर्म है ?
भूख से मौतें राष्ट्र शर्म है ॥

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गठरी पर-अजय कुमार
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