Monday, September 19, 2011

दो साल की "गठरी" --और गुम हुई चवन्नी (अजय की गठरी)

                                            -५६-

आप सब के सहयोग और शुभकामनाओं के साथ आज १९ सितम्बर २०११ को यह ब्लाग तीसरे वर्ष में प्रवेश कर रहा है।आप सबका आभार प्रकट करता हूं तथा विश्वास दिलाता हूं कि  अच्छा लिखने का प्रयास करता रहुंगा ।
इस वर्ष हमारे देश से "चवन्नी" खत्म हो गयी । बाजार में तो पहले ही इसका चलन लगभग समाप्त हो चुका था,आधिकारिक घोषणा इस वर्ष हुई।आम जीवन का अहम हिस्सा थी "चवन्नी" , इससे जुड़ी बहुत सी यादें हैं ,कहावते हैं । कोई चवन्नी छाप था तो कोई चवन्नी कम और चवन्नी उछाल कर तो दिल भी मांगने का चलन था ।कोई मेहमान आया तो बच्चे पहाड़ा (Table), ककहरा(क ख ग घ),या फिर ABCD-- सुना कर चवन्नी हासिल कर लेते थे । चवन्नी का लालच दे कर कहा जाता था -सर दबा दो ,उंगली चटका दो--- आदि आदि ।  आज भी याद आ जाती है वो "चवन्नी भर मुस्कान" जिसमें सिर्फ होंठ फैलते हैं ,दंत पंक्तियां नहीं दिखतीं--------

मुझे देखकर के वो जब मुस्कुरायी ।
वो खोई चवन्नी बहुत याद आयी ॥

भाई-बहन में चवन्नी की अनबन ।
गुल्लक के अंदर चवन्नी की छनछन ।
भइया के पूरे बदन की घिसाई ॥ 

कभी मूंगफलियां कभी खाये केले ।
चवन्नी मिलाकर बहुत मैच खेले ।
चवन्नी की लइया भुना कर के खायी ॥

चवन्नी की खातिर बहुत बेले पापड़ ।
चवन्नी गुमा कर बहुत खाये झापड़ ।
पहाड़ा सुना कर चवन्नी कमाई ॥

चवन्नी का सेनुर चवन्नी की टिकुली।      (सेनुर=सिंदूर,टिकुली=बिंदी)
सजना के दिल पर हजारों की बिजली ।
चवन्नी उछाले बलम हरजाई ॥

नर लगता नारी ये कैसा सितम है ।
जिसके बदन में चवन्नी भर कम है।
हे भगवन चवन्नी कम क्यों लगाई ॥

चवन्नी में जादू ,चवन्नी में मेला ।
चवन्नी में देखा मदारी का खेला ।
चवन्नी हमारे दिलों में समायी ॥
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गठरी पर अजय कुमार
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