Sunday, February 10, 2013

कहते हैं मेरे घर में , सामान बहुत है (अजय की 'गठरी ' )


जब तुम नहीं तो ये शहर, वीरान बहुत है |
तुम हो तो इस शहर में भी , जान बहुत है ||

मुझको बताओ दिल में मेरे दर्द क्यूं उठा
सुनते है तुम्हें दर्द की पहचान बहुत है ||

करना है आपको ही मेरे दर्द का इलाज |
बस मुस्कुराके देखिये , आसान बहुत है ||

रहती है इस गली में , कोई शोख हसीना |
कमसिन सी , अपने हुश्न से , अनजान बहुत है ||

हो जाय मयस्सर कभी जुल्फों  की घनी छाँव |
भेजूं किसी को फूल ये अरमान बहुत है ||

इन इश्क की गलियों में बहुत लोग मिलेंगे |
किसी का नाम बहुत है , कोई बदनाम बहुत है ||

पूछा किसी आशिक से , की आराम है कहाँ
बोला उन्हीं की बांह में आराम बहुत है ||

जब सो गए बच्चे तो ,उन्हें प्यार से चूमा |
बोले की हटो , छोड़ो , सुबह काम बहुत है ||

तुम्हारे ख़त , तुम्हारी याद , तुम्हारी तस्वीर |
कहते हैं मेरे घर में , सामान बहुत है ||
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"गठरी" पर अजय कुमार
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